April 20, 2024

डबल इंजन सरकार के प्रोत्साहन से हर खेत को पानी की दिशा में ठोस एवं प्रभावी कदम उठा रहा हिमाचल प्रदेश

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सर्व संकल्प से शत-प्रतिशत सिद्धी के मूल मंत्र के साथ कार्य कर रही केंद्र एवं हिमाचल प्रदेश की डबल इंजन सरकार ने कृषि क्षेत्र में संचालित क्रांतिकारी योजनाओं को धरातल पर उतारते हुए इनका त्वरित व समयबद्ध क्रियान्वयन सुनिश्चित किया है। मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर के कुशल नेतृत्व में वर्तमान प्रदेश सरकार द्वारा कृषि क्षेत्र की बेहतरी और कृषकों की सामाजिक आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ करने के लिए अनेक महत्वाकांक्षी योजनाएं एवं कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। कृषि क्षेत्र के लिए चालू वित्त वर्ष में 628.52 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है।
राज्य का लगभग 80 प्रतिशत कृषि क्षेत्र वर्षा सिंचित है। प्रदेश में किसानों को सिंचाई सुविधा उपलब्ध करवाने के लिए सरकार ने प्रवाह सिंचाई योजना, सूक्ष्म सिंचाई के माध्यम से कुशल सिंचाई योजना, जल से कृषि को बल योजना, उठाऊ सिंचाई योजना का निर्माण एवं बोरवेल आदि योजनाएं कार्यान्वित की हैं।
प्रदेश सरकार ने सृजित सिंचाई क्षमता व उपयोग की जाने वाली सिंचाई क्षमता के बीच के अंतर को कम करने के लिए राज्य क्षेत्र के तहत हिमकैड (HIMCAD) नाम से एक नई योजना शुरू की है। इससे बेहतर जल संरक्षण, फसलों के विविधकरण और एकीकृत खेती के लिए किसानों के खेतों के अंतिम छोर तक कनेक्टिविटी प्रदान की जाएगी। योजना के तहत 128.40 करोड़ रुपए व्यय कर मार्च, 2020 तक 274 पूर्ण लघु सिंचाई योजनाओं के 15242 हेक्टेयर क्षेत्र को कमांड क्षेत्र विकास (CAD) गतिविधियों के अंतर्गत लाया जा चुका है।
योजना के तहत मार्च, 2024 तक 23,344 हैक्टेयर कृषि योग्य कमान क्षेत्र (सीसीए) को कमांड क्षेत्र विकास गतिविधियां प्रदान करने के लिए राज्य तकनीकी सलाहकार समिति द्वारा 379 पूर्ण लघु सिंचाई योजनाओं के 305.70 करोड़ रुपए के सेल्फ को स्वीकृति प्रदान की गई है। इन योजनाओं का विकास कार्य विभिन्न चरणों में है।
जल शक्ति विभाग की राज्य तकनीकी सलाहकार समिति द्वारा वित्तीय वर्ष 2022-23 से 2024-25 के लिए 9300.52 हेक्टेयर कृषि योग्य कमान क्षेत्र में कमांड क्षेत्र विकास गतिविधियों के लिए 134.38 करोड़ रुपए की अनुमानित लागत के 168 योजनाओं के एक नए सेल्फ को मंजूरी प्रदान की गई है। इन 168 योजनाओं में से वर्ष 2022-23 के लिए 70 योजनाओं के 46.59 करोड़ रुपए अनुमानित लागत के पहले सेल्फ को प्रदेश सरकार द्वारा स्वीकृति प्रदान कर दी गई है जिससे 3487.30 हेक्टेयर भूमि में कमांड क्षेत्र विकास गतिविधियों को गति प्रदान की जा सकेगी।
इसके अतिरिक्त केंद्र प्रायोजित योजनाओं का लाभ भी हिमाचल के कृषकों को मिल रहा है। प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के अंतर्गत हर खेत को पानी के संकल्प के साथ हिमाचल प्रदेश को 338.1846 करोड़ रुपए की अनुमानित लागत की 111 लघु सिंचाई योजनाओं के लिए भारत सरकार से अब तक 291.62 करोड़ रुपए की केंद्रीय सहायता प्राप्त हो चुकी है। इन योजनाओं के माध्यम से 17,880.86 हेक्टेयर भूमि को कृषि सुविधा प्रदान की जाएगी।
इसके अतिरिक्त 14 लघु सिंचाई योजनाओं के 378.99 करोड़ रुपए के एक सेल्फ को केंद्र सरकार ने मंजूरी प्रदान की है जिससे 9665.18 हेक्येटर भूमि को सुविधा प्रदान की जाएगी। इसके लिए मार्च, 2022 में 17.05 करोड़ रुपए की केंद्रीय सहायता जारी की गई है। केंद्र सरकार ने अन्य लघु सिंचाई योजनाएं सेल्फ के लिए 74.81 करोड़ रुपए की केंद्रीय सहायता जारी की है और इनका विकास कार्य विभिन्न चरणों में है जिससे लगभग 3534.09 हेक्येटर भूमि को कृषि सुविधा प्रदान की जाएगी। राज्य में 11867.07 हेक्येटर भूमि को कृषि सुविधा प्रदान करने के लिए 329.74 करोड़ रुपए की 36 लघु योजनाओं का एक सेल्फ प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के हर खेत को पानी घटक हेतु वित्त पोषण के लिए अनुमोदित किया गया है।
प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना का प्रमुख उद्देश्य क्षेत्र स्तर पर सिंचाई में निवेश का अभिसरण प्राप्त करना, सुनिश्चित सिंचाई के तहत खेती योग्य क्षेत्र का विस्तार करना, पानी की बर्बादी को कम करने के लिए खेत में जल उपयोग दक्षता में सुधार करना, सटीक-सिंचाई और अन्य जल बचत प्रौद्योगिकियों (प्रति बूंद अधिक फसल) को अपनाना है। जलभृतों के पुनर्भरण को बढ़ाना और शहर से सटे क्षेत्रों में कृषि के लिए उपचारित नगरपालिका अपशिष्ट जल के पुनरू उपयोग की व्यवहार्यता की खोज करके स्थायी जल संरक्षण प्रथाओं को पेश करना और सटीक सिंचाई प्रणाली में अधिक से अधिक निजी निवेश को आकर्षित करना की परिकल्पना भी इसमें की गई है।
राज्य में 9.44 लाख हेक्टेयर भूमि पर काश्त होती है। प्रदेश सरकार किसान परिवारों को विभिन्न विकास कार्यक्रमों तथा आधुनिक तकनीक के लाभ पहुंचाने के लिए कृतसंकल्प है। भूमि और जल जैसे प्राकृतिक संसाधनों का इस प्रकार दोहन किया जा रहा है ताकि पर्यावरण संरक्षण को अपनाकर कृषकों का आर्थिक उत्थान सुनिश्चित बनाया जा सके।

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